भारत का इतिहास, Adhunik Bharat ka Itihas:-
उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुन्द्र तक फैला उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है, जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में 'भारतवर्ष' अथार्त ' भरतो का देश ' तथा यहा के निवासियों को भारती अथार्त भरत की संतान कहा गया है | भरत एक प्राचीन कबीले का नाम था | प्राचीन भारत आपने देश को जम्बूद्वीप, अतार्थ जम्बू (जामुन) वृक्षों का द्वीप कहते थे | प्राचीन ईरानी इसे सिंधु नदी के नाम से जोड़ते थे, जिसे वे सिंधु न कहकर हिन्दू कहते थे | यही नाम फिर पुरे पक्षिम में फ़ैल गया | यूनानी इसे "इन्दे" और अरब इसे हिन्द कहते थे | मध्यकाल में इस देश को हिंदुस्तान कहा जाने लगा | यह शब्द भी फार्शी शब्द " हिन्दू " से बना है | यूनानी भाषा के ''इन्दे'' के आधार पर अंग्रेज इसे इंडिया कहने लगा | पारा बदले विंध्य की पर्वत-शृंखला को उत्तर और दक्षिण , दो भागों में बाटती है | उत्तर में इंडो यरोपीय परिवार की भाषाएँ बोलने वालो की और दक्षिण में द्रविड़ परिवार की भाषाएँ बोलने वाले का बहुमत है |
नोट :- भारत की जन्शंख्या का निर्माण जिन प्रमुख नश्लों के लोगो के मिश्रण से हुआ है, वे इस प्रकार है__प्रोटो आस्ट्रलायड, पैलियो - मेडिटेरेनियन, काकेशायद, निग्रोयद, और मंगोलायड |
भारत इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन भागो में बता गया है --- प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत एवं आधुनिक भारत |
नोट:- सबसे पहले इतिहास को तीन भागो में बाटने का श्रेय जर्मन इतिहासकार क्रिस्टोफ सेलियरस (Christoph Cellarius ) (1638 -1707 AD ) को है |
प्राचीन भारत :- 1. प्राचीन भारत इतिहास के स्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यत: चार श्रोतो से प्राप्त होती है --
- धर्मग्रन्थ
- ऐतिहासिक ग्रन्थ
- विदेशियों का विवरण
- पुरातत्व सम्बन्धी साक्ष्य
धर्मग्रन्थ एवं ऐतिहासिक ग्रन्थ से मिलने वाली महत्वपूर्ण जानकारी :-
- भारत का सर्वप्राचीन ग्रन्थ वेद है , जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है | वेद बसुधवै कुटुम्बकम का उपदेस देता है | भारतीय परम्परा वेदो को नित्य तथा अपौरिशय मानती है | वेद चार है --- ऋग्वेद ,यजुर्वेद सामवेद एवं अथर्वेद इन चार ववेदो को संहिता कहते है |
ऋग्वेद
- ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है | इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त (वालखिल्य पाठ के 11 सूक्तो सहित ) एवं 10462 रचनाये है | इस वेद के रचनाओं के पढ़ने वाले ऋषि को ह्रोत कहते है | इस वेद से आर्य के राजनितिक प्रणाली इतिहास एवं इस्वर के महिमा के बारे में जानकारी मिलती है |
- विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रशिद्ध गायत्री मंत्र है | इसके 9 वे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है |
- इसके 8 वे मंडल की हस्तलिखित रचनाओ को खिल कहा जाता है |
- चतुरसवारण्य समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्वेद के 10 वे मंडल में वर्णित पुरुससूक्त है, जिसके अनुसार चार वर्ण (ब्राह्मण क्षत्रीय , वैश्य तथा सूद्र ) आदि पुरुष ब्रम्हा के क्रमश: मुख, भूजाओं , जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए |
- ऋग्वेद के कई परिछेदो में प्रयुक्त अधन्य शब्द का सम्बन्ध गाय से है |
नोट :- धर्मसूत्र चार प्रमुख जातिओ की स्थितियों, व्यवसायों , दायित्यो, कर्तव्यों तथा विशेसअधिकारो स्पस्ट विभेद करता है |
इसा पूर्व एवं ईस्वी
वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन केलिन्डर इसे धर्मगुरु इसा मसीह के जन्म वर्ष पर आधारित है | इसा मसीह के जन्म के पहले के समय को इसा पूर्व ( B. C - BEFORE THE BIRTH OF JESUS CHRIST ) कहा जाता है | इसा पूर्व वर्षो की गिनती उलटी दिशा में होती है , जैसे महात्मा बुद्ध का जन्म 563 इसा पूर्व में एवं मृत्यु ४८३ इसा पूर्व में हुवा | यानि इसा मसीह के जन्म के 563 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का जन्म एवं मृत्यु 483 वर्ष पूर्व मृत्यु हुई | इसा मसीह की जन्म तिथि से आरम्भ हुवा | ई को लैटिन भाषा के सब्द A.D में भी लिखा जाता है | A.D यानि Anno Domino जिसका शाब्दिक है -- In the year of lord ( Jesus Christ )
- वंबनावतार के तीन पंगो के आख्यान का प्राचीनतम स्रोत ऋग्वेद है |
- ऋग्वेद में इंद्रा के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 रचनाओं की रचना की गयी है |
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